श्रीरामचरितमानस में निहित शैक्षिक मूल्यों की वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रासंगिकता

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Author Name :- Piyush Kiran Mathur,Dr.Savitri Singwal,

Journal type:- IJCRI-International journal of Creative Research & Innovation

Research Field Area :-  Department of Education ; Volume 5, Issue 8, No. of Pages: 3 

Your Research Paper Id :- 2020080113

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Abstraction :-

नील कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग है, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान है और जिनके हाथों में अमोध बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्र जी को मैं नमस्कार करती हूँ। मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति माना गया है शिक्षा व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने का माध्यम है। यह हमारी संवेदनशीलता और दृष्टि को प्रखर करती है जिससे राष्ट्रीय एकता बढ़ती है और समझ एवं चिंतन में स्वतंत्रता आती है। शिक्षा हमारे संविधान में प्रतिष्ठित समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लक्ष्यों की प्राप्ति में हमारी सहायता करती है। किन्तु यह व्यावहारिकता और यथार्थवाद से कोसों दूर है। शिक्षा का प्रारम्भ इस लक्ष्य को लेकर हुआ कि सामाजिक दृष्टि से अच्छे इंसान तैयार हो किन्तु अब यह विकृत होकर ऐसी प्रणाली में बदल गई है, जो शरीर और बुद्धि की बात तो करती है किन्तु मनुष्य का आध्यात्मिक और भावनात्मक दृष्टि से स्पर्श नहीं करती। इसी का परिणाम है कि जीवन के आवश्यक मूल्यों का ह्मस हो रहा है और जन सामान्य का मूल्यों पर से विश्वास उठता जा रहा है। शिक्षाक्रम में ऐसे परिवर्तन की आवश्यकता है जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त साधन बन सके। शिक्षा में प्राचीन एवं आधुनिकता का समन्वय होना चाहिए। भौतिकता, आध्यात्मिकता, व्यवहार व सिद्धान्त का सन्तुलन होना चाहिए। शिक्षा में पारिवारिक भाव का विकास, नीति व्यवस्था, पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम का निर्धारण भी होना चाहिए। ‘शिक्षा’ का कार्य मानव जीवन को अधिक व्यवस्थित एवं श्रेष्ठ बनाना है। भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा की उत्तम व्यवस्था विभिन्न माध्यमों से की गयी है। इस दृष्टि से उपनिषदों व प्राचीन साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे ज्ञान का विस्तार होता रहा है। ऐसा माना जाता है कि उपनिषदों के रहस्यपूर्ण मंत्रों को सरल भाषा में श्रीरामचरितमानस द्वारा जनता तक पहुँचाया गया है।

Keywords :- 

शिक्षा, श्रीरामचन्द्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता

References :-

1. गोस्वामी तुलसीदास (1965), श्रीरामचरितमानस, गीता प्रेस गोरखपुर।
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3. रैना, शीला (2015), श्रीरामचरितमानस व रामावतार चरित का तुलनात्मक अध्ययन।
4. स्वामी रामसुख दास, मानव में नाम वन्दना।
5. राधेश्याम खेमका, कल्याण (रामभक्ति अंक)
6. सिंह अमिता रानी, रामचरितमानस में जीवन मूल्य
7. चरणदास शर्मा, तुलसीदास के काव्य में नैतिक मूल्य।
8. चक्रवर्ती बी. (1991), रामचरितमानस में मानव मूल्य।
9. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, रामायण की प्रगतिशील प्रेरणाएँ।
10. मो. इकरार अहमद (2014), रामचरितमानस में निहित शैक्षिक विचारों का विवेचनात्मक अध्ययन तथा वर्तमान शिक्षा में उनकी प्रासंगिकता।

 

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