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शिक्षा, मानव के गुणों को विकसित करने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा मानव की अन्तर्निहित योग्यताओं को विकसित करके समाज का विकास किया जाता है। शिक्षा न केवल बालक को वातावरण से अनुकूलन करने में सहायता देती है। वरन् उसके व्यवहार में ऐसे वांछनीय परिवर्तन भी करती कि वह अपना एवं अपने समाज का कल्याण करने में सफल होता है। शिक्षा इन कार्यों को सम्पन्न करके ही सच्ची शिक्षा कहलाने की अधिकारिणी हो सकती है।
किसी बालक की शिक्षा उस समय प्रारंभ हो जाती है, जब वह अपने सम्मुख उपस्थित वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करता है। सामंजस्य ही समायोजन है। जब बालक जन्म लेता है, तब वह सम्पूर्ण बातों से अनभिज्ञ होता है, परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वह वैसे-वैसे परिवार के सदस्यों के सम्पर्क में आकर पारस्परिक प्रेम, सहानुभूति, सहनशीलता, जैसे अनेक व्यवहारिक गुणों को अपने घर में ही सीखता है। इस कारण से बालक का परिवार ही उसकी प्रथम पाठशाला कहलाता है। बालक की शिक्षा परिवार से प्रारंभ होकर जीवन पर्यन्त चलती है। शिक्षा व्यक्ति का सर्वागीण विकास करती है।
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