भारतीय प्राचीन दर्शन में निहित शैक्षिक तत्वों की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में प्रासंगिकता

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Author Name :- Rani Ojha,,

Journal type:- IJCRI-International journal of Creative Research & Innovation

Research Field Area :-  Department of Education ; Volume 6, Issue 1, No. of Pages: 3 

Your Research Paper Id :- 2021010119

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Abstraction :-

शिक्षा का दर्शन शिक्षा सम्बन्धी अनेक प्रश्नों का उत्तर खोजता है। इस सम्बन्ध में डाॅ. एस.एस. माथुर का कथन समीचीन है कि ‘‘शिक्षा का दर्शन, शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का दर्शन की दृष्टि से विवेचन करता है।‘‘ शिक्षा-दर्शन प्रायः जीवन दर्शन होता है। जीवन दर्शन और शिक्षा दर्शन के मध्य कोई पार्थक्य नहीं किया जा सकता है। किसी शिक्षा-दर्शन का मूलत जीवन के आदर्शों एवं लक्ष्यों के संदर्भ में शिक्षा के उद्देश्यों के प्राप्तार्थ शैक्षिक कार्यक्रम और परीक्षा एवं शैक्षिक संगठनों का मूल्याकन, विषय-वस्तु विधियों, अध्यापक निर्माण, मापन इत्यादि से सम्बन्ध होता है। प्राचीन भारतीय दर्शन में जीवन का सच्चा सुख, सुच्चा ज्ञान, श्रेष्ठ आचरण, जीवन के प्रति निर्मल दृष्टि एवं उच्च आदर्श निहित है। अतः भारतीय प्राचीन दर्शन में निहित शैक्षिक तत्वों की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में प्रासंगिक हैं।

Keywords :- 

प्राचीन दर्शन , शैक्षिक , वर्तमान शिक्षा ,प्रणाली , अध्यापक, लक्ष्य

References :-

1. गुप्त सुरेन्द्र दास (1972): भारतीय दर्शन का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी जयपुर।

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