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श्रीमद्भगवद्गीता में निहित शैक्षिक मूल्यो का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन
श्रीमद्भगवद्गीता में निहित शैक्षिक मूल्यो का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन
Author Name :- Dr. Savitri Singwal,Laxmi kumari,
Journal type:- IJCRI-International journal of Creative Research & Innovation
Research Field Area :- Department of Education ; Volume 5, Issue 7, No. of Pages: 3
Your Research Paper Id :- 2020070130
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[श्रीमद्भगवद गीता श्लोक 2/47] योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण जग नायक थे। उन्होंने अन्याय] अनीति] अत्याचार एवं अकर्म को अमानवीय मानते हुए] मानव को न्याय संगत] नीति पूर्ण] श्रेवठ आचरण व निःस्वार्थ भाव से कर्म करने की शिक्षा दी है। महाभारत में विद्या को मोक्षदायिनी बताया है। आज समस्त विश्व आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में अज्ञान के पर्दे से ढका हुआ है। योगेश्वर कृष्ण ने इसे माया कहा और साथ ही यह भी बताया कि ज्ञानी व योगी इस माया से मुक्त हो सकते है। श्रीमद्भगवद्गीता हमारे ज्ञानचक्षु खोलकर अज्ञान के कपाटों को बन्द कर देती है। श्रीमद्भगवदगीता की अमृतमयी वाणी हमारे आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यो को पुनः जावित करती है।
महात्मा गांधी ने कहा था – “जब निराशा मेरे सामने आकर खडी होती है जब मैं बिल्कुल एकाकी महसूस करता हूँ मुझे प्रकाश की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ती] तब मैं श्रीमद्भगवदगीता की शरण लेता हूं। वहा मुझे कोई न कोई श्लोक ऐसा मिल जाता है कि मैं विषम परिस्थितियों में भी मुस्कराने लगता हूँ। … ”
श्रीमद्भगवदगीता हमारे ग्रन्थो का एक अत्यन्त तेजस्वी हीरा है इसमें भक्ति] ज्ञान और कर्म का जो अपूर्व समन्वय है वो निश्चित ही मानव के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। महर्षि वेदव्यास एक महान युगदृष्टा थे उन्होने अपनी दिव्य लेखनी से संसार को एक नई दिशा प्रदान की है। भटकता हुआ मानव गीता की शरण पाकर उसी प्रकार निश्चिंत- व भय मुक्त हो जाता है जैसे – माता का आंचल पाकर शिशु प्रसन्न हो उठता है। गीता का ज्ञान वर्तमान भौतिकवादी युग में निश्चित ही मानव के लिये एक वरदान सिद्ध होता है। क्योकि इसका आध्यामिक दर्शन श्रेवठ कर्म से जोड़ता है और हमारे ज्ञान चक्षु खोलता है। श्रीमद्भगवद्गीता का प्रत्येक श्लोक प्रतिकूल परिस्थितियो में भी मुस्कने का सूत्र प्रदान करता है।अत: इसे साधक संजीवनी भी कहा जाता है।
Keywords :-
श्रीमद्भगवद गीता, भगवान, शिक्षा , श्लोक
References :-
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