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प्रस्तावना
सूर्य का प्रकाश पाकर कमल का फूल खिल उठता है तथा सूर्य अस्त होने पर कुम्हला जाता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा के प्रकाश को पाकर बालक कमल के फूल की भांति खिल उठता है। शिक्षा वह प्रकाश है जिसके द्वारा बालक की बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। जाॅन डी.वी. के मतानुसार ‘‘शिक्षा व्यक्ति की उन सभी योग्याताओं का विकास है जिनके द्वारा वह वातावरण पर नियंत्रण रखने तथा अपनी संभावनाओं को पूर्ण करने की क्षमता का विकास करते है।
किशोरावस्था वह समय है, जिसमें किशोर अपने को व्यस्क समझता है और व्यस्क उसे बालक समझते है। इस अवस्था में किशोर का शारीरिक विकास इतनी तीव्र गति से होता है कि उसमें क्रोध, घृणा, चिड़चिड़ापन, उदासीनता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते है। इस अवस्था में बालक दूसरों का नियंत्रण पसंद नहीं करता है, वह अपने निर्णय स्वयं लेना पसंद करता है, अतः किशोरावस्था में बालक के विकास के लिए सांवेगिक समायोजन अहम भूमिका निभाता है।
ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति की संवेगात्मक बुद्धि उच्च स्तर की होती है तो उसका सांवगिक समायोजन उच्च स्तर का होता है क्याोंकि वह संवेग को समझकर उनके साथ समायोजन कर लेता है। किशोरावस्था में कुछ विद्यार्थी शिक्षा की तरफ ध्यान देते है, कुछ शिक्षा से दूर रहने का प्रयास करते है और कुछ अपनी शिक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते है।

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